जिसने पैरोके निशान भी नहीं छोड़े पीछे,उस मुसाफिर का...पता भी नहीं पूछा करते,हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छुटा करते,वक़्त की शाख से लम्हे नहीं टुटा करते,छूट गए यार, न छुटी यारी, मौला! तुने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना,हम कई सदियाँ.. तुझे घूम के देखा करते, हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूता करते..."गुलज़ार ...
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Monday, January 7, 2008
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